परमहंस योगानंद जी की आत्म कथाएं

परमहंस योगानंद जी का परिचय

परमहंस योगानंद बीसवीं सदी के एक महान गुरु थे। उनका जन्म मुकुंद लाल घोष के रूप में ५ जनवरी १८९३ को गोरखपुर उत्तर प्रदेश में हुआ योगानंद के पिता भगवती चरण घोष रेलवे के उपाध्याय के समकक्ष पद पर कार्य करते थे ।योगानंद अपने माता पिता की चौथी संतान उनके माता-पिता महान योगी लाहिड़ी महाशय थे लाहिड़ी महाशय की प्रेरणा से ही मुकुंद लाल घोष अध्यात्मिक की ओर अग्रसर हुए योगानंद के अनुसार क्रिया योग ईश्वर का साक्षात्कार की एक प्रभावी विधि है । मेरे पहले गुरु मेरे पिताजी ही थे मैं बचपन से ही तेजस्वी था जब मैं 2 साल का था तभी मैंने कैलाश का सपने में विचरण करते हुए देखा था ।जब मैं 5 साल का था तब यह बात नहीं सबको बताया धीरे-धीरे में बड़ा होने लगाऔर उसी के साथ साथ ज्यादा ज्ञान हासिल करने के लिए अलग-अलग संतो से मिलने लगा। जब मैं 11 साल का था तो मैंने एक विजन में देखा कि मेरी मां बनने वाली है। और कुछ ही दिनों में बिल्कुल वैसा ही है मैं बहुत ज्यादा दुखी हो गया था। और मुझे सच जानना था। इसीलिए मैंने हिमालय जाने का सोचा  पर मुझे बड़े भाई ने रोक लिया था। जब मैं 17 साल का था तब मुझे युक्तेश्वर गुरु के रूप में मिले जिन्हें मैंने कई बार अपने विजन में देखा था जब मैं बनारस में पहली बार देखा तो मैं समझ गया था। कि इनसे ही जीवन के बारे में मैं बहुत कुछ समझ सकता हूं। और उन्होंने बहुत कुछ सिखाया भी उस में सबसे ज्यादा खास था। क्रिया योग इस क्रिया योग में अपने सास के द्वारा शरीर और आत्मा को एक किया गया था। मैंने इसका बहुत अभ्यास किया आखिरकार यह विद्या हासिल भी कर ली गुरु से सीखने के साथ-साथ मैं खुद से भी अध्ययन किया करता था ।मैं बहुत कुछ सीख सकूं मैं अध्ययन में डूबा रहता था। इसीलिए मेरे गुरुजी ने कहां योगानंद जो कुछ हासिल करना चाहते हो भौतिक जीवन में रहकर हासिल करो।१९१५  मैंने श्री रामपुर कॉलेज यूनिवर्सिटी में डिग्री हासिल की इसके बाद गुरु का आदेश मिलने के बाद मैं अपने सन्यासी जीवन पर चल पड़ा और उसी दिन के बाद मुझे स्वामी योगानंद के नाम से जानने लगे।

मेरा परिवार मेरा इतिहास

जीवन में किन-किन लोगों से मिला

 पुनर्जन्म

आध्यात्मिक ज्ञान और जीवन के बारे में

मेरा परिवार मेरा इतिहास

योगानंद का जन्म गोरखपुर 5 जनवरी 1893 को हुआ था। वह जीवन के पहले 8 वर्ष वही व्यतीत हुए थे  वे चार भाई और एक बहन थे। मुकुंद लाल घोष भाइयों में दूसरा और चौथी संतान था उनके माता-पिता बंगाली क्षत्रिय थे दोनों ही संत प्रकृति के थे ।उनके पिता श्री भगवती चरण घोष दयालु गंभीर और कभी-कभी कठोर स्वभाव के थे वह असाधारण व्यक्तित्व और तर्कशास्त्र वेत्ता थे। मैं हमेशा अपनी बुद्धि से ही काम लेते थे किंतु उनकी मां तो प्यार की देवी थी वह गरीबों की सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहती थी वह दान पुण्य में सबसे आगे रहती थी पर पिताजी का कहना था। कि अपनी आर्थिक सीमा के अंदर ही वह करना पसंद करते थे। एक बार मेरी मां ने गरीबों को खाना खिलाने के लिए पिता की आय से अधिक रकम खर्च कर दी थी इस बात पर पिताजी बहू नाराज हुए उन्होंने कहा दान धर्म उचित सीमा के अंदर करो मां को यह अच्छा ना लगा अम्मा ने अपने घोड़ा गाड़ी मंगवाई वह मायके जाने के लिए तैयार हूं तभी वहां पर मामा आए उन्होंने पिताजी से कुछ कान में कहा और पिताजी ने घोड़ा गाड़ी वापिस भेज दी। तभी वहां पर विवाद का अंत का हुआ कुछ समय बात मां का देहांत हो गया सारी जिम्मेदारी पिताजी पर आ गई। 

मैंने सदा ही देखा कि पिताजी संतुलित निर्णय लेते थे यदि मैं पक्षी का चित्र प्रस्तुत कर देता था तो वह मेरी इच्छा पूरी कर दे देते चाहे वह छुट्टियों में भ्रमण करने की बात हो या नहीं मोटरसाइकिल की पिताजी अनुशासन में बच्चों के साथ रहते थे परंतु खुद सरल स्वभाव और सात्विक जीवन व्यतीत करते थे। वे कभी थिएटर नहीं गए विभिन्न साधनों और भगवत गीता पढ़ने में ही उन्हें आनंद आता था उन्होंने सारे सुखों का त्याग कर दिया था वह सिर्फ 1 जोड़ी जूते का भी तब तक प्रयोग करते थे जब तक वह बिल्कुल पटना जाते थे उनके बेटों ने कार खरीद ली परंतु पिताजी ऑफिस जाने के लिए ट्रामगाड़ी से ही संतुष्ट रहे। धन संचय करने में पिता को कोई रुचि नहीं थी उनकी इच्छा केवल नागरिक कर्तव्य निर्वाह करने की थी।

अध्यात्म

भारत वनस्पति आयुर्वेद का देश है। जहां पर मैंने बच्चों को अध्यात्म योग संस्कृति सिखाना था। मुझे अपना ज्ञान पूरी दुनिया तक पहुंचाना था। 1920 में अमेरिका चला गया। वहां के लोगों ने मेरे ज्ञान को दिल खोलकर अपनाया। अपने ज्ञान को आसानी से पहुंचाने के लिए सेल्फ रिलाइजेशन  फैलोशिप लेशन से शुरू किया। अपने सफर के दौरान में महत्वपूर्ण लोगों से मिला।

जीवन में किन-किन लोगों से मिला

मेरे अद्भुत जीवन में मेरी मुलाकात परफ्यूम संतुष्ट है जो खुद को कभी भी गायब कर सकते थे।  और प्रकट भी कर सकते थे

उसके बाद टाइगर स्वामी से मिला जिन्होंने अकेले ही टाइगर को  हराया भी था मारा भी था।

 प्लवनशिल संत ये योगी को जमीन से कई फीट ऊपर हवा मे ठहरे हुए देखा। उनके कई कमाल हमने देखे। एक बार भादुदी महाशय ने  भस्त्रिका प्राणायाम इतनी जोर से किया  कि लगता था कमरे में तूफान आ गया।

फिर उन्होंने गर्जन को बंद कर दिया और वह अतिचेतना समाधि की उच्चअवस्था में निश्चल बैठे रहे तूफान के बाद शांति का वातावरण भुलाया नहीं जा सकता है 20 वर्षों से वह घर के भीतर ही रहते हैं केवल त्योहारों के अवसरों पर नियम थोड़ा ढीला करते हैं वह अपने ही अहाते में स्थित सामने की पगडंडी तक जाते हैं वहां पर भिखारी जमा हो जाते हैं क्योंकि भादुड़ी अपने दयाद हृदय के लिए प्रसिद्ध है।

मैं एक योगिनी से मिला जिन्होंने अपनी सारी उमर समाधि में गुजारा था। उन्हीं दिनों मैंने एक व्यक्ति का नाम सुना जो बंगाल से थी उनका नाम बाला था। कई दशकों से उन्होंने कुछ भी नहीं खाया था। सिर्फ और सिर्फ योग की शक्तियों से जिंदा थी इन योग्य और संतों के अलावा जगदीश चंद्र बसु, रामानंद महर्षि जो मेरे काफी करीब रहते थे।

पुनर्जन्म

क्या आप जानते हैं कि कुछ बच्चे जन्म से ही बड़े लोकप्रिय  हो जाते हैं।कुछ बच्चे जन्म से ही उपेक्षित हो जाते हैं। पुनर्जन्म कुछ नहीं हमारे  कर्मों के अनुसार मिला हुआ जीवन है।हर बार कर्मों के हिसाब से पुनर्जन्म होता रहेगा यह आप पर निर्भर है कैसा जीवन जिया है और कैसा जीवन जीना चाहते हो मैंने अपने कर्मा से जो कुछ भी सीखा है वह सिर्फ पांच सीख के जरिए आप तक पहुंचाना चाहता हूं मेरी इस ब्लॉक में सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट यही पाठ है तो मेरी सबसे पहली सीख है।

१-बौद्ध या आत्मज्ञान

२-खुशियों का जीवन जीना

३-विचार की शक्ति

४-जीवन में उद्देश्य बना लो

५-हमेशा दूसरों के लिए जीना

अध्यात्मिक ज्ञान

हमसे बेहतर हमें कोई नहीं जान सकताहर दिन कुछ पलों के लिए खुद के अंदर झांक कर देखो खुद से सवाल करो क्या मैंने सही किया है क्या मैं सही कर रहा हूं आज दिन भर मन भर में मैंने क्या सही किया क्या गलत किया है इससे आप भटकने से हमेशा के लिए बचाओग।सकारात्मक सोचना इच्छाशक्ति आज का आज कल का माहौल ऐसा हो चुका है जिसमें हम सकारात्मक स्पष्ट रूप से नहीं सोच सकते इसीलिए हमको अपनी एक इच्छा शक्ति बनानी होगी इच्छाशक्ति वह चीज है जो हमेशा आपको आपके लचके तरफ ले जाए इच्छाशक्ति कमजोर पड़ी तो नकारात्मक विचार आपके ऊपर हावी हो जाएंगे इच्छाशक्ति की सबसे बड़ी रुकावट है डर इसीलिए हम को डर को जीतना होगा सभी चीजें एक दूसरे से लिंक है। सफल होना है ।तो  निडर बनना ही पड़ेगा हमें ध्यान साधना करना चाहिए विचारों को नियंत्रित करने के लिए मेडिटेशन बहुत जरूरी है अपने विचारों को को एकत्र करना खुद में झांकना ध्यान को एक जगह केंद्रित करना पहले 1 मिनट भी बैठना मुश्किल लगेगा पर आप दिमाग में डाल लो अगर अपने सपने पूरा करना चाहते हैं। तो मेडिटेशन करना सीख लो जब आदत पड़ जाएगी तो आप का फोकस बन जाएगा जहां पर आप का फोकस होता है। वहां पर हर चीज हम पा सकता है।

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